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Author: ramrampanditji

प्रत्येक सोमवार के दिन करें भोलेनाथ जी की यह व्रत कथा

सोमवार का दिन शंकर भगवान को समर्पित होता है। आज के दिन भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं । कुछ लोग आज के दिन व्रत भी रखते, ताकि शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त की जा सके। बाबा भोलेनाथ के आशिर्वाद के लिए अगर आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूरा करें।

सोमवार व्रत की विधि– सोमवार व्रत मे व्यक्तियों को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए। शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए । सोमवार का व्रत शाम तक रखा जाता है । सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सोम प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत. इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है।

सोमवार की व्रत कथा– एक समय की बात है, किसी नगर में एक व्यापारी रहा करता था । उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसकी कोई भी संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी रहता था । पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव जी और पार्वती जी की पूजा किया करता था । उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया । मां पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है । लेकिन पार्वती जी ने व्यापारी की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई । माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया । लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती जी और भगवान शिव जी की बातचीत को व्यापारी सुन रहा था । उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख । वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा । कुछ समय के बाद व्यापारी के घर एक पुत्र का जन्म हुआ । जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया । व्यापारी ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना । जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना।

shivji vrat katha

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े । रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था । लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था । राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची।

व्यापारी के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया । उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं । विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा । लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया । लेकिन व्यापारी का पुत्र ईमानदार था । उसे यह बात अच्छी नहीं लगी।

उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है । मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।

जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई । राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई । दूसरी ओर व्यापारी का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया । जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया । लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है । मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ । शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए । मृत भांजे को देख उसके मामा ने रोना शुरू कर दिया । उसी समय शिवजी जी और माता पार्वती जी उधर से जा रहे थे । माता पार्वती जी ने भगवान शिवजी जी से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा । आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें । जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया  था । अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है, माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।

माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया । शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया । शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिए । दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था । उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया । उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया । इधर व्यापारी और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे । उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे । परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए । उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है । इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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क्या है महामृत्युंजय जाप

सावन के महीने में महामृत्युंजय करने से समस्त नवग्रह की शांति हो जाती है भविष्य में आने वाली सभी समस्या का समाधान हो जाता है जिनके घर महामृत्युंजय की पूजा होती है उस घर में भगवान शिव का वास होता है इस कारण उस घर में भूत-प्रेत कभी नहीं आते दुख दरिद्र कभी नहीं आते भगवान शिव की कृपा से घर में शांति बनी रहती है!

 घर का कोई सदस्य किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और समझती इलाज कराने के बाद में भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है तो भगवान मृत्युंजय का जाप घर में कराना चाहिए

जिन घर में आर्थिक तंगी चल रही है प्रयास करने के बाद में भी नौकरी नहीं लग पा रही जॉब के लिए परेशान हो रहै है वह व्यक्ति कहीं मृत्युंजय का जाप करा ले तो उसके घर में धन धान्य की वृद्धि होगी

रुद्राभिषेक- विधान-एक सम्पूर्ण जानकारी-

 रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है क्योंकि- *रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:* यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि

 सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:

अर्थात्:- सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है।

साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ कीपूर्ति के लिये तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक की जाती है।

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रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं-

• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।

• असाध्य रोगों एवं बाधा दोष एवं ऐसी बीमारी जो पकड़ में नही आ रही हो को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।

• भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।

• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।

 • धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।

 • तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है।

• पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्रा रुद्राभिषेक करें।

• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।

 • ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।

 • सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।

• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै।

• शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।

 • सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है। एवं उसका मारण होता है।

 • शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है। लक्ष्मी प्रप्ति होती है।

• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।

 • गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।

• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है।

पूजा से जुड़ी हुईं अति महत्वपूर्ण बातें

 ★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता

★ जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,

★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

★ देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

★ किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

★ एकादशी, अमावस्या, कृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुं कुम नहीं चढ़ती।

★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,

★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

★ देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

★ किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

★ एकादशी, अमावस्या, कृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुं कुम नहीं चढ़ती।

★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

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जानिये काल सर्प के सटीक उपाय

कालसर्प योग के प्रकार, मूलरुप से इस समय 12 प्रकार के कालसर्प योग है जो विख्यात सर्पों के नाम पर आधारित है कई बार यह योग जातक को बहुत ऊंचाई पर भी ले जाते है इसलिए ऐसा कहना गलत होगा की यह सब के लिए अशुभ है आइये जानते है 12 प्रचलित योग जो इस प्रकार से है-

  1. अनंत कालसर्प योग
  2. कुलिक कालसर्प योग
  3. वासुकि कालसर्प योग
  4. शंखपाल कालसर्प योग
  5. पदम कालसर्प योग
  6. महापदम कालसर्प योग
  7. तक्षक कालसर्प योग
  8. करकोटक कालसर्प योग
  9. शंखचूड़ कालसर्प योग
  10. घातक कालसर्प योग
  11. विषधर कालसर्प योग
  12. शेषनाग कालसर्प योग

1.अनंत कालसर्प योग- यदि लग्न में राहु एवं सप्तम् में केतु हो, तो यह योग बनता है. जातक कभी शांत नहीं रहता. झूठ बोलना एवं षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है।

2.कुलिक कालसर्प योग- यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम हो, तो यह योग बनता है. इस योग में पुत्र एवं जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता सुख का अभाव एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है।

3.वासुकी कालसर्प योग- यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो एवं इसके मध्य सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है. इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम में कमी, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट, विदेश प्रवास में कष्ट उठाने पड़ते हैं।

 4.शंखपाल कालसर्प योग- यदि राहु नवम् में एवं केतु तृतीय में हो, तो यह योग बनता है. जातक भाग्यहीन हो अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में बार-बार निलंबित होता है।

5. पद्म कालसर्प योग- अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग में संतान सुख का अभाव एवं वृद्धा अवस्था में दुखद होता है. शत्रु बहुत होते हैं, सट्टे में भारी हानि होती है।

 6.महापद्म कालसर्प योग- यदि राहु छठे भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो, तो यह योग बनता है इसमें पत्नी विरह, आय में कमी, चरित्र हनन का कष्ट भोगना पड़ता है।

7.तक्षक कालसर्प योग- यदि राहु सप्तम् में एवं केतु लग्न में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट होती है, पत्नी सुख नहीं मिलता, बार-बार जेल यात्र करनी पड़ती है।

8. कर्कोटक कालसर्प योग- यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है. इस योग में भाग्य को लेकर परेशानी होगी. नौकरी की संभावनाएं कम रहती है, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति नहीं मिलती और नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं।

9.शंखचूड़ कालसर्प योग- यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव एवं स्वास्थ्य खराब रहता है।

10.घातक कालसर्प योग- यदि राहु दशम् एवं केतु सुख भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता का वियोग होता है।

11.विषधर कालसर्प योग- यदि राहु लाभ में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाईयों से विवाद रहता है, हृदय रोग होता है एवं शरीर जर्जर हो जाता है।

12.शेषनाग कालसर्प योग- यदि राहु व्यय में एवं केतु रोग में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित हो शरीर सुखित नहीं रहेगा, आंख खराब होगा एवं न्यायालय का चक्कर लगाता रहेगा।

काल सर्प योग में जन्मे जातक में प्रायः निम्नलिखित लक्षण  पाए जाते है।

1- सपने में उसे नदी, तालाब,कुए,और समुद्र का पानी दिखाई देता है।

2- सपने में वह खुद को पानी में गिरते एवं उससे बाहर निकलने का प्रयास करते करते हुए देखता है।

3- रात को उल्टा होकर सोने पर ही चेन की नींद आती है। 4- सपने में उसे मकान अथवा पेरो से फल आदि गिरते दिखाई देता है।

कालसर्प दोष भंग के लिए दैनिक छोटे उपाय

1. 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।

2. सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।

3. शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग.।

4. अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।

5. शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।

6. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.

7. शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप करें (ग्यारह शनिवार)

8. सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान – इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।

9. काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें।

10. सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी में नागदेवता का विसर्जन करें।

11. श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।

12. प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर – हर हर महादेव’ कहते हुए अभिषेक करें। हर रोज श्रावण के महिने में करें।

13. सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।

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जानिये कुछ खास पूजा और अनुष्ठान की जानकारी

  1. नवग्रह शांति पूजा

हिंदू शास्त्रों में,  नौ ग्रहों की पूजा की जाती है क्योंकि वे हमारे जीवन को प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं। नौ ग्रह- सूर्य, चंद्र, मंगला, बौद्ध, गुरु, शुक्रा, शनि, राहु और केतु ये सभी हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं- यह उनकी स्थिति पर निर्भर करता है। पुरुष ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए और उनके के साथ आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए, नवग्रह शांति पूजा की जाती है।

  1. संतान-प्राप्ति-करने-के-लिए-पूजा

आपके ग्रहों की समस्याओं के कारण संतान प्राप्ति में भी समस्याएँ हो सकती हैं और गर्भवती होने की यह हिंदू पूजा एक बच्चे का गर्भ धारण करने में निःसंतान दंपतियों की मदद करेगी। अपने बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य और विकास के लिए भी विवाहित लोगों को इस पूजा को करने भी सलाह दी जाती है।

  1. बुरी नजर से बचने के लिए पूजा

बुरी नजर से बचाव के लिए, भैरव गहरी दान पूजा बुरी नजर को हटाने के लिए की जाती है। बुरी ऊर्जा आपके जीवन को सबसे बुरे तरीके से प्रभावित करती है। बुरी नजर आपके करियर, स्वास्थ्य, और पारिवारिक जीवन को प्रभावित करती है। यह पूजा नकारात्मक ऊर्जाओं को आपके जीवन को प्रभावित करने से रोकने में मदद करेगी।

  1. व्यवसाय में सफलता पाने के लिए

व्यापार में सफलता पाने के लिए भगवान से आशीर्वाद लेना वास्तव में आपके व्यवसाय क्षेत्र में समृद्धि लाने और सफलता प्राप्त करने में आपकी मदद कर सकता है। व्यवसाय में वृद्धि और व्यवसाय में सफलता के लिए पूजा व्यवसायियों को उनके व्यावसायिक उपक्रमों से वांछित परिणाम प्राप्त करने में मदद करेगी।

  1. स्वास्थ्य समस्याओं के लिए पूजा

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की पुनरावृत्ति, जन्मजात स्वास्थ्य समस्याएं और लंबी अवधि की बीमारी की समस्याओं को पूजा की मदद से ठीक किया जा सकता है। माता-पिता, बच्चों एवं पतियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूजा, और लोगों को उनके स्वास्थ्य की चिंताओं को हल करने में मदद करती हैं।

  1. भूमि और संपत्ति के लिए पूजा

आपकी कुंडली में कुछ दोषों से भूमि और संपत्ति के मुद्दों में समस्या हो सकती है। भूमि और संपत्ति के लिए इस पूजा को करने से आपको अपने ग्रहों को सक्षम बनाने में मदद मिलेगी और भूमि देवी को प्रसन्न करने के लिए आपके जन्म चार्ट से हानिकारक ग्रहों का हल करके आपको उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा।

  1. विवाह संबंधी चिंताओं/परेशानियों के लिए पूजा

विवाह में देरी विभिन्न कारणों से हो सकती है- मनचाहे दूल्हे या अच्छी कुंडली का न मिलना। ग्रह आपके विवाह के समय को प्रभावित करते हैं और आपकी शादी कैसे काम करती है। जल्दी शादी के लिए देवी पार्वती की पूजा करने से आपको सही वर मिल सकता है और शादी की समस्याओं के लिए पूजा करने में मदद मिल सकती है जो आपके विवाहित जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करने में मदद करेगा।

  1. काले जादू से बचने के लिए पूजा

बुरी ऊर्जाओं से सुरक्षा और राहत के लिए। यह पूजा अच्छे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ दुर्घटनाओं और बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करती है।

  1. कुंडली में दोषों के निवारण के लिए पूजा

ज्योतिषीय चार्ट में ग्रह और उनकी स्थिति कुंडली में विभिन्न दोषों का कारण बन सकती हैं, जिससे समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दोष निवारण पूजा, दोष के बुरे प्रभाव को दूर करने में मदद कर सकती है। राहु दोष निवारण पूजा, विवाह से पहले मंगल दोष निवारण, नाड़ी दोष के लिए पूजा और पितृ दोष निवारण पूजा आपको अपने जीवन को सही रास्ते पर लाने में मदद करती है

  1. करियर में सफलता के लिए पूजा

इन दिनों एक प्रमुख चिंता आपके करियर के बारे में है, एक नई नौकरी ढूंढना, अपनी मनचाही नौकरी, करियर में बदलाव और वृद्धि। आपकी योग्यता और हार्डवर्क के अलावा, आपके ग्रह संबंधी सफलता या रूकावट के लिए जिम्मेदार हैं। यदि आप अपने करियर में वांछित सफलता प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं, तो भगवान से आशीर्वाद पाना चाहते हैं और करियर में तरक्की के लिए पूजा करते हैं, आपको जीवन में सफल होने में मदद कर सकती है।

  1. परीक्षा में सफलता के लिए पूजा

उद्देश्य की प्राप्ति और ध्यान का अभाव मुख्य कारण है जिससे छात्रों को पढ़ाई में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ ग्रहों के परिवर्तन से एकाग्रता और ध्यान की कमी हो सकती है, लेकिन प्रतियोगी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए, ग्रहों को सशक्त बनाने के लिए, परीक्षाओं के लिए अनुष्ठान और पूजा करने से इन समस्याओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है। परीक्षा परिणामों में सफलता के लिए विभिन्न मंत्र व्यक्तियों को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करेंगे।

  1. धन संबंधी समस्याओं के लिए पूजा

धन-संपत्ति समस्याएं आपके जीवन के किसी भी स्तर पर अशांति का कारण बन सकती हैं। ग्रह या तो आपके लाभ को आसमान तक ले जा सकती हैं या आपको बहुत ज्यादा नुकसान दे सकता है। वित्तीय परेशानियां आपके जीवन में विभिन्न समस्याओं का कारण बन सकती हैं- आप अपने व्यवसाय में गंभीर नुकसान का सामना कर सकते हैं, आप भारी कर्ज के बोझ तले दब सकते हैं, आपके निवेशों में बाधा आ सकती है, या आपको काम में लाभ को बढ़ाने में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। धन-संपत्ति समस्याओं के लिए सही ढंग से की गई पूजा से सभी वित्तीय परेशानियों को दूर किया जा सकता है।

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कुंडली क्या है और क्या यह काम करती है?

कुंडली के माध्यम से व्यक्ति के भविष्य, भूत और वर्तमान को जाना जा सकता है। हमें सबसे पहले कुंडली को समझकर शुरुआत करनी चाहिए। क्युकी कुंडली मे लिखी हुई चीजें सच होती है। कुंडली एक रूप से निर्मित है जो आपके सूर्य राशियों पर निर्भर करती है। ज्योतिष कुंडली में दिन-प्रतिदिन के राशिफल पढ़ने, ज्योतिषीय भविष्यवाणियों, भविष्य के पूर्वानुमान, मंगनी, और हमारे जीवन के बारे में कई अन्य संबंधित अंशों के बारे में अविश्वसनीय वास्तविकताओं को दिखाया गया है। हिंदू धर्म में, ज्योतिष कुंडली का मिलान शादी से पहले किसी के साथ विवाह करने की एक मूलभूत प्रक्रिया है, क्योंकि इसे मैचमेकिंग के लिए कुंडली की जांच करना शुभ और अनुकूल माना जाता है। लोगों की तारीख/समय/जन्म स्थान के आधार पर, कुंडली-मिलान को साकार किया जाता है, और बाद में, इसके रीडिंग के आधार पर, परिवार यह निष्कर्ष निकालता है कि शादी बाद में होनी चाहिए या नहीं।

कुंडली में, ज्योतिष कुंडली ‘स्वाभाविक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक वास्तविक और प्रामाणिक जन्म चार्ट है जो ब्रह्मांडीय पिंडों और मनुष्य को ज्ञात ग्रहों के अनुसंधान और मूल्यांकन पर निर्भर है। ज्योतिष कुंडली भी दैनिक राशिफल और करियर पथ, प्रेम जीवन, समग्र कल्याण और किसी व्यक्ति के गुणों की भविष्यवाणियों को खोजने में मूल्यवान है। और हमें यह समझने में भी मदद करता है कि एक निश्चित व्यक्ति (मैचमेकिंग), नौकरी के मुद्दों, बुढ़ापे की बीमारियों और स्वास्थ्य के इलाज, शिक्षा से संबंधित प्रश्नों और एक विद्वान ज्योतिषी (ज्योतिष) के माध्यम से हमारा जीवन कैसा होगा।

कुंडली कैसे काम करती है?

कुंडली ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय में आकाश में जो ग्रह, तारा या नक्षत्र जहाँ था उस पर आधारित कुंडली बनाई जाती है। 12  राशियों पर आधारित नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों का अध्ययन करके भविष्य बताया जाता है। ये भाव किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न ज्योतिषीय पहलुओं और स्थितियों का खुलासा करते हैं। कुंडली बनाने की प्रक्रिया में प्रत्येक घर जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे करियर, रिश्ते, पैसा, आदि से संबंधित है। इसके अलावा, ग्रह की स्थिति के आधार पर ग्रह एक दिन, महीने और वर्ष में अलग-अलग दिशाओं में चलते रहते हैं। ये ग्रह किसी व्यक्ति के जीवन में विभिन्न घटनाओं और संभावित परिणामों को दर्शाते हैं। जन्म कुंडली को पढ़कर ज्योतिषी ग्रहों की दृष्टि के आधार पर किसी व्यक्ति के भाग्य का अनुमान लगा सकता है।

विवाह कुंडली मिलान

विवाह के लिए कुंडली मिलान  बेहद आवश्यक होता है। हिंदू संस्कृतियों में, विशेष रूप से भारत में, जहां व्यवस्थित विवाह एक आदर्श है, विवाह प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ते समय नाम से कुंडली मिलान सबसे महत्वपूर्ण कारक है। भावी वर और वधू की मिलान कुंडलियों से पता चलेगा कि सितारे उनकी शादी को कैसे प्रभावित करते हैं और चिरस्थायी वैवाहिक आनंद सुनिश्चित करने के लिए वे क्या कदम उठा सकते हैं। निष्कर्ष अष्ट कूट पद्धति पर आधारित हैं, जो अनुकूलता की गणना के लिए 36-बिंदु प्रणाली का उपयोग करता है।

कुंडली मिलान क्या है और यह कैसे काम करता है?

नाम और जन्म तिथि से कुंडली मिलन एक हिंदू संस्कार है जो विवाह के पहले आयोजित किया जाता है। यह वर और वधू की कुंडली (जन्म कुंडली) के मिलान की विधि है, यह देखने के लिए कि क्या उनके सितारे एक फलदायी और सुखी विवाह के लिए संरेखित हैं। जन्मकुंडली मिलन, पितृमिलन, या गन मिलन कुंडली मिलान विवाह के लिए कई चरों पर आधारित है जो कुंडली मिलान ऑनलाइन स्कोर को तय करने में जाते हैं, जिन्हें गुण भी कहा जाता है।

जन्म तिथि और नाम से कुंडली मिलान कुंडली मिलान और लड़का-लड़की की अनुकूलता निर्धारित करने का सबसे सटीक और विश्वसनीय तरीका है। इसका उपयोग विवाह समारोह के लिए शुभ मुहूर्त की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है, जिससे एक लंबी और खुशहाल शादी सुनिश्चित हो सके।

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दोहा

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास ।
मनो कामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस ॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार ।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही । ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी । सब विधि पुरबहु आस हमारी ॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा । सबके तुमही हो स्वलम्बा ॥

तुम ही हो घट घट के वासी । विनती यही हमारी खासी ॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी । दीनन की तुम हो हितकारी ॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी । कृपा करौ जग जननि भवानी ॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी । सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी । जगत जननि विनती सुन मोरी ॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता । संकट हरो हमारी माता ॥

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो । चौदह रत्न सिंधु में पायो ॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी । सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी ॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा । रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा । लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं । सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी । विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी । कहँ तक महिमा कहौं बखानी ॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई । मन-इच्छित वांछित फल पाई ॥

तजि छल कपट और चतुराई । पूजहिं विविध भाँति मन लाई ॥

और हाल मैं कहौं बुझाई । जो यह पाठ करे मन लाई ॥

ताको कोई कष्ट न होई । मन इच्छित फल पावै फल सोई ॥

त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी । त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ॥

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे । इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ॥

ताको कोई न रोग सतावै । पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना । अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना ॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै । शंका दिल में कभी न लावै ॥

पाठ करावै दिन चालीसा । ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै । कमी नहीं काहू की आवै ॥

बारह मास करै जो पूजा । तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं । उन सम कोई जग में नाहिं ॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई । लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा । होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥

जय जय जय लक्ष्मी महारानी । सब में व्यापित जो गुण खानी ॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं । तुम सम कोउ दयाल कहूँ नाहीं ॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै । संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ॥

भूल चूक करी क्षमा हमारी । दर्शन दीजै दशा निहारी ॥

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी । तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी ॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में । सब जानत हो अपने मन में ॥

रूप चतुर्भुज करके धारण । कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई । ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ॥

रामदास अब कहै पुकारी । करो दूर तुम विपति हमारी ॥

दोहा

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास ।
जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश ॥

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर ॥

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श्री गणेश स्तोत्र | Shree Ganesh Stotra

नारद रचित द्वारा श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करने से आपके जीवन में सुख, समृद्धि आती है। आइये इस स्तोत्र का पाठ कीजिये

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।

भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।

तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।

।।इति संकटनाशनस्तोत्रं संपूर्णम्।।

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shiv rudrashtkam path

शिव रूद्राष्टकम

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

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शिवजी को हम आदि योगी, भोलेनाथ, शिवशंकर, महादेव, आदि नाम से भी पुकारते हैं शिवजी के भक्तो पर भोलेनाथ की हमेशा कृपा बनी रहती है।  शिव चालीसा के द्वारा आप महादेव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक सोमवार को शिव चालीसा का पाठ करने से शिवजी की कृपा बानी रहती है।

शिव चालीसा पाठ – जय गिरिजा पति दीन दयाला

॥दोहा॥

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

|| चौपाई ||

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

Shiv Chalisa Lyrics in English

॥ Doha ॥
Jai Ganesh Girija Suvan Mangal Mul Sujan।
Kahat Ayodhya Das Tum Dev Abhaya Varadan ॥

॥ Chaupai ॥
Jai Girija Pati Dinadayala।
Sada Karat Santan Pratipala ॥

Bhala Chandrama Sohat Nike Kanan।
Kundal Nagaphani Ke ॥

Anga Gaur Shira Ganga Bahaye।
Mundamala Tan Chhara Lagaye ॥

Vastra Khala Baghambar Sohain Chhavi।
Ko Dekha Naga Muni Mohain ॥

Maina Matu Ki Havai Dulari।
Vama Anga Sohat Chhavi Nyari ॥

Kara Trishul Sohat Chhavi Bhari Karat।
Sada Shatrun Chhayakari ॥

Nandi Ganesh Sohain Tahan Kaise।
Sagar Madhya Kamal Hain Jaise ॥

Kartik Shyam Aur Ganara-U Ya Chhavi।
Ko Kahi Jata Na Kauo ॥

Devan Jabahi Jaya Pukara।
Tabahi Dukha Prabhu Apa Nivara ॥

Kiya Upadrav Tarak Bhari Devan Sab Mili।
Tumahi Juhari ॥

Turata Shadanana Apa Pathayau।
Lava-Ni-Mesh Mahan Mari Girayau ॥

Apa Jalandhara Asura Sanhara Suyash।
Tumhara Vidit Sansara ॥

Tripurasur Sana Yudha Machayi।
Sabhi Kripakar Lina Bachayi ॥

Kiya Tapahin Bhagiratha Bhari Purva।
Pratigya Tasu Purari ॥

Danin Mahan Tum Sama Kou Nahin।
Sevak Astuti Karat Sadahin ॥

Veda Nam Mahima Tab Gayaee Akatha।
Anandi Bhed Nahin Payee ॥

Pragate Udadhi Mantan Men Jvala।
Jarat Sura-Sur Bhaye Vihala ॥

Kinha Daya Tahan Kari Sahayee।
Nilakantha Tab Nam Kahayee ॥

Pujan Ramchandra Jab Kinha।
Jiti Ke Lanka Vibhishan Dinhi ॥

Sahas Kamal Men Ho Rahe Dhari Kinha।
Pariksha Tabahin Purari ॥

Ek Kamal Prabhu Rakheu Joi।
Kushal-Nain Pujan Chaha Soi ॥

Kathin Bhakti Dekhi Prabhu Shankar।
Bhaye Prasanna Diye-Ichchhit Var ॥

Jai Jai Jai Anant Avinashi।
Karat Kripa Sabake Ghat Vasi ॥

Dushta Sakal Nit Mohin Satavai।
Bhramat Rahe Mohin Chain Na Avai ॥

Trahi-Trahi Main Nath Pukaro।
Yahi Avasar Mohi Ana Ubaro ॥

Lai Trishul Shatrun Ko Maro।
Sankat Se Mohin Ana Ubaro ॥

Mata Pita Bhrata Sab Hoi।
Sankat Men Puchhat Nahin Koi ॥

Svami Ek Hai Asha Tumhari।
Ava Harahu Aba Sankat Bhari ॥

Dhan Nirdhan Ko Deta Sadahin।
Jo Koi Janche So Phal Pahin ॥

Astuti Kehi Vidhi Karai Tumhari।
Kshamahu Nath Aba Chuka Hamari ॥

Shankar Ho Sankat Ke Nishan।
Vighna Vinashan Mangal Karan ॥

Yogi Yati Muni Dhyan Lagavan।
Sharad Narad Shisha Navavain ॥

Namo Namo Jai Namah Shivaya।
Sura Brahmadik Par Na Paya ॥

Jo Yah Patha Karai Man Lai।
Tapar Hota Hai Shambhu Sahayee ॥

Riniyan Jo Koi Ho Adhikari।
Patha Karai So Pavan Hari ॥

Putra-hin Ichchha Kar Koi।
Nischaya Shiva Prasad Tehin Hoi ॥

Pandit Trayodashi Ko Lavai।
Dhyan-Purvak Homa Karavai ॥

Trayodashi Vrat Kare Hamesha।
Tan Nahin Take Rahe Kalesha ॥

Dhupa Dipa Naivedya Charhavai।
Anta Vasa Shivapur Men Pavai ॥

Kahai Ayodhya Asha Tumhari।
Jani Sakal Dukha Harahu Hamari ॥

॥ Doha ॥

Nitya Nema kari Pratahi।
Patha karau Chalis ॥

Tum Meri Man Kamana।
Purna Karahu Jagadish ॥

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श्री दुर्गा चालीसा | Durga Chalisa | नमो नमो दुर्गे सुख करनी

हिंदू धर्म में माँ देवी दुर्गा जी का बहुत महत्त्व है। नवरात्रि के दिनों में माता दुर्गा के अवतारों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि दुर्गा चालीसा का पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है और जीवन में आर्थिक परेशानियों को दूर करने में मदद मिलती है। कहा जाता है कि देवी दुर्गा की पूरे मन से प्रार्थना करने से धन, ज्ञान और समृद्धि प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त, यदि आप अनावश्यक विचारों से छुटकारा पाने का रास्ता खोज रहे हैं, तो दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥

शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥

रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४

तुम संसार शक्ति लै कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८

रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भई फाड़कर खम्बा ॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो । हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं । श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२

क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥

मातंगी अरु धूमावति माता । भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६

केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै ॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत । तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥

रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४

अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥

शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥

शक्ति रूप का मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२

शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥

आशा तृष्णा निपट सतावें । मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६

शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥

करो कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै । सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०

देवीदास शरण निज जानी । कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक ॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥

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